संस्थापक अध्यक्ष स्व. श्री
आर. एल. जोशी जी को समर्पित
अनेक व्यक्तियों या संस्थाओं
द्वारा किसी समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिये मिलकर प्रयास करना
सहका(cooperation) कहलाता है। समान उद्देश्य की पूर्ति के लिये अनेक
व्यक्तियों या संस्थाओं की सम्मिलित संस्था को सहकारी संस्था कहते
हैं।आर्थिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए संस्थाबद्ध हुए लोग जो व्यवसाय
चलाकर समाज की आर्थिक सेवा तथा संस्था के सभी सदस्यों को आर्थिक लाभ
कराते हैं, को सहकारिता या सहकारी समिति कहा गया। इस प्रकार के
व्यवसाय में लगने वाली पूंजी संस्था के सभी सदस्यों द्वारा आर्थिक
योगदान के रूप में एकत्रित की जाती है। पूंजी में आर्थिक हिस्सा रखने
वाला व्यक्ति ही उस सहकारी संस्था का सदस्य होता
है।
सुख और उसके उपादानों के प्रति भले ही
रुचि-वैभिन्न्य हो, मगर सुख की लालसा सभी मनुष्यों में लगभग एकसमान
होती है. परंतु प्रत्येक व्यक्ति में इतना सामथ्र्य नहीं होता कि वह
अपनी इच्छा-आकांक्षाओं के अनुरूप सुख के साधन जुटा सके. ये सीमाएं
प्राकृतिक और परिवेशगत, किसी भी प्रकार की हो सकती हैं. इन्हीं
अक्षमताओं के कारण व्यक्ति देश एवं समाज पर अवलंबित रहता है. सहकार और
सहकारिता की आवश्यकता इसी अभाव की पूर्ति के लिए पड़ती है.दुनिया के
किसी भी व्यक्ति की कार्यक्षमता इतनी नहीं है कि वह दूसरों के सहयोग
के बिना, अपने लिए सभी सुख-सुविधाओं का प्रबंध करके, उनका आनंद उठा
सके. आवश्यक संसाधनों और सुविधाओं से वंचन तथा उनके अर्जन की संकुचित
सीमाओं का बोध, मनुष्य को समाज के प्रति विनम्र एवं आग्रहशील बनाता
है, वही उसको उस दिशा में कार्यशील समूह की शरण में ले जाता
है.
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